‘‘कपाल भाती-अनुलोम-विलोम’’ और कोरोनो भैया..

इंडिया में योगा का प्रचलन और आज इसकी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति कोरोना भैया से संवाद में भी अछूती नहीं रही। बोले ‘‘तुम्हारे यहाँ हमको बहुत तरीके की दिक्कतें भी आ रही हैं। जहाँ घुसने की कोशिश करो, हर जगह आदमी पिला पड़ा है और ‘धौंक’ रहा है।

मैंने पूछा धौंक रहा है मतलब? बोले हमने तुम्हारे पातंजलि वाले बाबा जी का नाम तो बहुत सुना था, लेकिन उनका कमाल आने पर देखा।

तुम तो जानते ही हो हमारी ड्यूटी चौबीस घंटे रहती है। हमें कोई छुट्टी तो मिलती नहीं। जब सुबह-सुबह का राउंड लगाने घुसने के लिए कहीं भी पहुँचो हर तरफ क्या आदमी और क्या औरतें सब पिली पड़ी रहती हैं। मैनें पूछा यह पिला-पिली से मतलब।

भाई बोले अरे क्या यह हर जगह आदमी-औरतन ‘‘प्राणायाम’’ में लगे हैं, कोई नाक से हवा खींच के ‘‘अनुलोम-विलोम’’ कर रहा है या फिर ‘‘श्वास-प्रशास’’। एक जगह पहुंचें तो कोई घर में नेती (नाक से पानी) निकाल रहा है या कोई पेट को धक्का दे लगा धौंकनी चला ‘‘कपाल – भाती’’ और ‘‘भस्तिका’’ ठोंक रहा है।

भाई ने आँखों में आंसू भरते हुए कहा ‘‘तुम तो जानते ही हो हमारा रोग फैलाने का रास्ता मुंह और नाक से अंदर जाने का है या फिर छूने से और तुम लोग हो कि पिले पड़े हो कि बस हमारा रास्ता ब्लॉक रहे और हम घुस न पाएं’’।

भर्राये गले से बोले एक जगह तो साहब – मेमसाहब दोनों ‘‘शवासन’’ में पड़े थे। अब जब खुद यह अपने आपको मारने की प्रैक्टिस कर रहे हैं, तो हम इनमें घुस के क्या टाइम खराब करें। कभी-कभी तो हम तुम्हारे इंडिया में परेशान आ जाते हैं कि अब हम घुसे तो कहां घुसे।

भाई बोले ऐसा थोड़े है कि दिल्ली के दौरे में हम तुम्हारे ‘‘मित्रों’’ की तरफ झांकने नहीं गए थे। वहां की हालत देख कर तो हम घबरा ही गए।

पता नहीं कौन-कौन से आसन कर रहे थे, बिल्कुल ‘संतन’ की तरह ऊँ देर तक कर रहे थे और जैसे -जैसे ऊँ बोल रहे थे, आवाज बढ़ती जा रही थी। हम बैठे देखते रहे कि आक्रमण कहाँ से करें तो भाईसाहब खड़े हुए और मोटा सा गमछा बाँध लिया।

अरे यह मित्तरों हैं। दुनिया भी लोहा मान रही है, हम लौट आये कि चलो फिर मौका तलाशेंगे। काढ़ा जब सबको पिला रहे हैं तो पता नहीं खुद कितनी ‘लेयर’ लगाए बैठे हों।

(कोरोना भैया मेरे सपने में पूरा ब्यौरा)

Sanjay Mohan Johri

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