जैसा कहा वैसा किया – कोरोना भैया

कल नींद नहीं आ रही थी, बस करवटें ही बदल रहे थे लेकिन फिर झपकी लग गयी! थोड़ी देर ही सोए होंगे, अचानक तेज-तेज आवाजें आने लगी “जैसा कहा वैसा किया” और फिर यही दोहराते हुये आवाज और तेज हो गईं! शायद सपना था और यह कोई और नहीं अपने “कमबख्त जाहिल कोरोना भैया” थे!

बोले दरवाजा खोलो भाई हम बाहर हैं!

मैंने आव देखा न ताव और कहा “भक्क- भाग यहाँ से”! दूर हो जाओ मेरी नजरों से! आने की क्या जरूरत है! कोई घर छोड़ा है तुमने जो तुमको हम ‘लिफ्ट’ दें! तुमने लखनऊ को ‘वुहान’ बना दिया है, नफरत हो गई है तुमसे! पड़े रहो दरवाजे के बाहर! चाय- पानी पीना है तो भिखारियों की तरह बाहर ही मिल जाएगी! कमीने कह रहे हो “जैसा कहा वैसा किया”! अब जब सब कुछ कर ही दिया है तो कैसी दोस्ती!

अरे भाई “जैसा कहा वैसा किया” यह हम नहीं कह रहे यह तो मितत्रों का वादा था! हम तो चिन-पिन की कमांड में हैं! पप्पू भी तो बोल रहे ऐसा, बाहर से ही खड़े-खड़े भैया बोले!

मैंने कहा हमको यह सब नेताओं की बात नहीं सुननी!

बाहर का मंजर देख रहे हो! लाशों के ढेर लगे हैं, क्रिया कर्म नहीं हो पा रहे! अस्पताल में बेड नहीं, बेड हैं, तो ऑक्सिजन नहीं! डॉक्टर छोढ़ के भाग रहे! प्राइवेट डॉक्टर तो देखने से मना कर रहे! मैंने कहा तुमको शर्म नहीं आती! कहावत है ‘मुंह खाता है, आँख शर्माती है! तुमने तो जिस थाली में खाया उसी में छेद किया! अरे बिल्ली भी एक घर छोढ़ देती है!

यह तुमने क्या हाल कर रखा है! आदमी दहशत में है खौफनाक मंजर है! दिखते भी नहीं हो और एक ही शहर में लाखों की संख्या में घुस रहे! मैं आवेश में बोले जा रहा था!

कोरोना भैया बोले जरा गम खाओ और हमारी भी सुनो!

हम बाबा, मितत्रों और मोटा भाई सबके पास गए गए थे, कहा कि सावधानी बरतो और देश को पहले देखो लेकिन वह हमारी सुनते कहाँ? बोले हमको ‘दीदी’ को निपटाना है और खुद दिन भर हवा में उड़ते रहे “दै दौरा कि दै दौरा”! हर जगह गला फाड़ रहे! एक दिन तो हम मितत्रों कि दाड़ी में घुसे बैठे रहे और धीमे से कहा भी दादा बंद करो यह सब, देश देखो! बोले देश अपने आप चलता है!

दरअसल जबाब तो तुम लोगों का भी नहीं है ! मैंने पूछा क्यों हमने क्या किया?

अच्छा यह बताओ महामारी से निपटना जरूरी है या चुनावन से! अब राजनीति खेल लो या हम से निपट लो! जब हम पिछले साल आए थे तो तुम सब की बज गयी थी!

मितत्रों ने कितने अच्छे तरीके से काम करवाया! युद्ध की तरह हमसे निबटे! थाली बजवाई, दीप जले और रोज टीवी पर खड़े रहते थे! लोगन में हिम्मत बढ़ाई और फिर जबर्दस्त इंतेजाम! ट्रंपवा तक की बज गयी थी! मुंह सिकड़ू कुछ न कर पाया! बचा खुचा चुनाव भी हार गया! तुम्हारा 135 करोड़ का भारत जीत गया!

तुम्हारा बाबा तो गज़ब का रहा सारा प्रशासन हिला कर रख दिया था! लेकिन इस बार टोटल फ़ेल, टोटल! खुद घूमे से फुर्सत नाही क्योंकि मंदिर-मस्जिद खेलना है, हम तो तैनाती पर हैं ही, महाराष्ट्र से घुसे और उत्तर की तरफ बढ़ लिए! पता नहीं तुम्हारे लोकल नेता क्यों दरबे में घुसे है! जनता के प्रतिनिधि होकर जनता के न हुये!

अब बताओ तुमने सारी प्राइवेट लैब हमारी टेस्टिंग के लिए बंद करा दीं क्योंकि तुमने उनके मालिकों से कहा कि अनुमति तभी देंगे जब “नेगेटिव रिपोर्ट” दोगे! देखो राजनीतिज्ञों की कोई छवि नहीं होती लेकिन समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति ऐसा झूठा सौदा नहीं करता!

हमने कहा तुम भी तो टेस्टिंग में सही नहीं निकल रहे!

देखो हमको पकड़ने के लिए तरीका है! तुमने देरी की और हम नाक और गले के नीचे उतर गए क्योंकि हमको असली सुकून तो ‘फेफड़े’ में पहुँचने के बाद ही मिलता है! हमने मन ही मन कहा कितना क्रूर और कमीना है यह अद्रष्य जीव!

उधर इस कमीने ने बोलना जारी रखते हुये कहा जब तुम सबको पता था कि बगैर ऑक्सिजन के काम नहीं चलता तो मितत्रों और बाबा ने इसकी व्यवस्था क्यों नहीं करी! जब हमने पूछा तो कह रहे “हमारा वादा मंदिर बनाने का था, ऑक्सिजन प्लांट और वेंटीलेटर का नहीं”! अब बताओ हम इसमे क्या करें! वैक्सीन बनाकर भी विदेश ज्यादा भेजी, अपने लोगों के लिए कम पड़ा दीं! तुम हमारा सत्यानाश पीट रहे, इन लोगन का कुछ नहीं ! सत्ता सुख, विलासिता और सभी संस्था पर कब्जा!

हमने तो दादा से कहा था कुछ दिन ‘लॉकडाऊन’ लगाकर हमको घेर लो लेकिन बोले चुनाव जरूरी है! अब सारे मजदूर भागते चले आ रहे क्योंकि वोट पड़वाना है!

इन्हीं सब चीजों का चिन-पिन फायदा उठाता है! हमको बुलाकर कभी ‘अफ्रीकन’, कभी ‘यूके’ और पता नहीं कहाँ का इंजेशन ‘घुसेड़’ कर खुराफात करता रहता है और कहता ही कि रूप बदल गया जाओ फिर घुसो, सो हम क्या करें! हम खुद तो कुछ कर नहीं सकते!

अच्छा यह तुम्हारे ‘कपालभाती-बाबा’ कहाँ अंतर्ध्यान हो गए! इनहोने ने तो हमारी लिए कोई ‘धान्सू-दवा’ बनाकर हँगामा काट दिया था! बता रहे कोई ‘नाक’ में डालने के लिए तेल बनाए हैं? हमने कहा घास-फूस का आदमी और बनाएगा क्या लेकिन मार्केट से सब गायब है!

हमने कहा अच्छा बॅक-बॅक बंद करो और निकलो! बोले अच्छा हमार भौजी ठीक बा! हमने कहा नहीं डाऊन दिख रही!

देखो हमारी दुर्गा माँ ही तुमको ठीक करेंगी तुमने उनका प्रकोप देखा नहीं है!

जाते जाते बोले अच्छा गुस्सा नहीं बस हमारा इतना प्रवचन जरूर सुन लो

राम युग में दूध मिले, और कृष्ण युग में घी; कोरोना युग में काढा मिले, डिस्टेंस बना कर पी!nजब दुनियाँ लेके बैठी है, बड़े-बड़े परमाणु; तुम हम जैसे विषाणु से डर गए! प्लीज मुझसे डरो मत!

कितनी अच्छी है तुम्हारी संस्कृति; पश्चिम कि तरह न चूमते, न गले लगाते! दोनों हाथ जोड़कर, तुम नमस्ते करते; वही करो ना, मुझसे क्यों डरते?

भैया बोले कहाँ से सीखा तुमने, रूम स्प्रे, बॉडी स्प्रे; पहले तो तुम धूप, दीप, कपूर, अगरबत्ती जलाते;nवही करो ना!nदेखो हम तुम लोगों को तुम्हारी संस्कृति फिर से याद दिलाने आए हैं!

शुरू से तुम्हें सिखाया गया, अच्छे से हाथ पैर धोकर घर में घुसो! मत भूलो, अपनी संस्कृति; वही करो!

सादा भोजन, उंच्च विचार, यही तो रहे तुम्हारे संस्कार उन्हें छोड़, जंक फूड, फ़ास्ट फूड के चक्कर में क्यों पड़ गए??

Sanjay Mohan Johri

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