‘तुम्हारे इंडिया में सब मस्त बा’ – कोरोना भैया

गहरी नींद में सोया ही था कि ऐसा लगा किसी ने कस के झझकोरा ! देखा सामने अपने ‘कोरोना भैया’ खड़े थे! पहले तो मैं चौंका क्योंकि यह तो ‘वैक्सीन’ आने की खबर के बाद लंबे निकल लिए थे और फिर एक अंतराल के बाद हमने भी भुला सा दिया था!

‘का बा- मतलब बिलकुल भुलाए दिये’ अपनी उसी चिर-प्रतीक्षित शैली में भैया बोले और शुरू हो गया उनका भाषण!

“यह तुम्हारे यहाँ हो क्या रहा है ! बिलकुल छुटटन माहौल बनाए हुये हो ! न मास्क, न दूरी और साफ सफाई तो तुंहरे यहाँ है ही नाही ! ज़िंदगी चकाचक चल रही ! अब बताओ आते समय ‘चौक’ की तरफ से रास्ता ले लिए! कोई ‘गोल-गप्पे’ पेल रहा तो कोई ‘चाट’ ! ठंडाई पर तो बड़ी लंबी लाइन लगी थी”!

बता रहे हैं ‘मित्तरों’ ने ‘वैक्सीन’ क्या चालू कर दी है सब फ़िकरमस्त हो गए हैं!

वैसे ‘मित्तरों’ का जबाब नहीं ! अरे हम कम से कम ‘हैड्लाइन्स’ में तो बने हुये थे अब ‘फ्रंट-पेज’ पर हटा के ‘वैक्सीन’ आ गयी है !

मैंने कहा बैठ जाओ क्या एक ही सांस में बोले जाओगे ! पानी पियो और कुछ सुस्ता लो !

भैया बोले ‘हाँ हम लंबी दूरी से उड़ते हुये आ रहे हैं ! इंटरनेशनल दौरे पर थे , थक तो गए हैं और यह कहते हुये सोफ़े पर धंस गए ! बोले जरा पत्ती मार कर कड़क सत्तर नंबर चाय पिलाया जाए, कुछ सुस्ती दूर कर लें !

हमने कहा तुम्हारी ‘ढाबे’ की आदत अभी गई नहीं !

बोले अच्छा बताया जाय तुम ,भाभी और हमार बच्चा पार्टी ठीक बा ! हमने कहा तुम जितना दूर रहे अच्छे ही रहे , हम सब अपने आपको बचाए रखे हैं ! अब फिर ‘टपक’ पड़े हो , संभाल कर रखना पड़ेगा !

तपाक से वह बोले ‘नहीं- नहीं हम तो तुम्हारे अपने हैं’ !

बोले तुमने ‘वैक्सीन’ लगवाई कि नहीं ! लगवा लो फर्क पड़ेगा ! अब ‘मित्तरों’ ने तो खुद भी ठुकवा ली है लेकिन प्रचार कुछ ज्यादा कर दिया ! समझ में नहीं आया अपनी ‘फोटो’ काहे को चिपकवा दिये हैं सर्टिफिकेट पर , खा गए मुंह की चुनाव आयोग ने झाड़ ही दिया !

दरअसल यह मित्तरों ने ‘जान-भूझ’ कर किया ! मैंने कहा इसमें जान-भूझ पर क्या !

बोले इसे ‘नेगेटिव पब्लिसिटी’ कहते है , मुस्करा के बोले मित्तरों का काम बन गया ! यह आर॰एस॰ एस वालें हैं , तुम इनकी खुराफात न समझ पाओगे !

हमने कहा अच्छा कड़क चाय पी ली अब अपने हाल भी तो बताओ ! लगे तो तुम बराबर हुये हो ! तुम्हारे यहाँ तो सब ठीक हो गया ! ‘चिन-पिन’ ने स्वास्थ्य संगठन -जेनेवा से आई टीम की खूब खातिर तवाज़ा कर सब ‘मैनज’ कर लिया !

कुटिल मुस्कराहट के साथ बोले ‘जैसे तुम्हारे यहाँ ऐसा नहीं होता’ !

टीम वुहान गई थी ! सच्चाई देखी कि बनाया तो सब हमारा ही था ! बस आँखें फेर ली , मोटी रकम ली, खाया- पिया और ‘चिन-पिन’ ने जैसा कहा वैसी रिपोर्ट बना दी ! अब देखो पुरानी कहावत है – मुंह खाता है आँख शर्माती है !

तुम्हारे यहाँ नहीं टीम आती हैं और सभी ‘यूनिवर्सिटी’ भले ही चुंगी के स्कूल के स्तर बराबर न हों A ग्रेड का ‘सर्टिफिकेट’ पा जाती हैं ?

चिन-पिन ‘वुहान फैक्टरी’ में हम लोगों की नई जाति -प्रजाति बनाने में लगा हुआ है और अंतराष्ट्रीय स्तर पर हमारे भाई-बहन भेजे जा रहा है ! देखा नहीं इंग्लैंड का हाल , नया स्ट्रेन दाल दिया है , परेशान हैं वहाँ के डॉक्टर ! अमेरिका तो अभी भी दुनियाँ में नंबर एक पर चल रहा है ! तुम्हारे यहाँ भी आठ राज्यों में हमने फिर से आक्रमण किया है! ! धीरे धीरे असर दिखेगा ! नई फ़सल के साथ हम और फैलेंगे !

कोरोना भैया बोले लेकिन हमें एक बात की भई बहुत खुशी है !

मैंने पूछा क्या !

बोले तुम सब खाय पिये इतने मजबूत हो कि कौनों फरक नहीं पड़ता !

अब देखो बगैर मास्क , दूरी और साफ-सफाई के भी तुम्हारे यहाँ कौनों प्रोब्लेम नाही ! हम घुसने के बाद खुदहि चकर-घिन्नी हो जात हैं ! तुम लोगन के पेट में गरम मसाला, तेल , मिरचा , खटाई , अदरक – इतनी चीजों का घोल पड़ा रहता है कि हम तो उसी में ‘कन्फूजिया’ जात हैं ! हम खुदहि उसे खा मस्त हो जात हैं और तुम सब बस बुखार – वुखार के बाद चंगे हो जाते हैं !

बड़ा चाट-चट्टान खाते हो ! और ऊपर से काढ़ा , हमारी मारक छमता का सत्यानाश पिट जाता है !

अब तमाशा देखो तुम्हारे यहाँ पाँच राज्यो में चुनाव हो रहा है ! मित्तरों से लेकर बड़े बड़े नेता चुनाव सभा करेंगे ! है कोई रोक-टोक ! हजार लाख भीड़ जमा होगी ! रोड के कोने पर खोमचा लगा देखना लोग कैसे ख़स्ता कचौड़ी समोसा और छोला-भटूरा लपेटते हैं ! हमारे बस का नहीं इन लोगन में घुसना ?

इधर शहर में देखो लाइन लगी पड़ी है ! सब हमको खतम करने के लिए ‘वैक्सीन’ लगवाए पड़े हैं !

दरअसल हम तुम्हारे यहाँ आकार चकर-घिन्नी हो चुके हैं , कन्फ्युज हो जाते हैं !

अब गाँव का किसान तीन महीने से लाखों की संख्या में डटा हुआ है ! कैसे किसान है जो खाये पिये रोड पर पड़े लंगर चला रहे हैं ! हम भी लंगर में मस्ती किये, हमने कहा का करेंगे घुस कर ?

अब देखो बता रहे हैं ! स्कूल कॉलेज यूनिवर्सिटी सब खोल दिये हैं लेकिन पढ़ा रहे हैं ‘ऑनलाइन’ ! मास्टर बेचारे खामख़्वाह लैपटाप लेकर स्कूल कॉलेज से पढ़ा रहे हैं! मजाक बना रखा है – स्टूडेंट हैं नहीं, वह घर में मस्ती कर रहे और तुम सब फीस पूरी वसूल रहे ! कहने के लिए नाम और डर हमारा है ! यह सब आडंबर क्यों !

दरअसल डर तो हम रहे हैं !

हमने कहा अच्छा ‘तुम्हारा प्रोग्राम क्या है’ ?

बोले अब आए हैं तो कुछ समय रहेंगे ! पहले हालत का जायजा तो लें !

चुनाव वाले राज्यों में दौरे के लिए चिन -पिन ने घुसने के लिए कहा है !

अब होली भी आ रही है तो हवेली भी जाना होगा , अम्मा -बाबूजी से भी मिलेंगे !

मैंने कहा ठीक है रुको तुम , फिर तुम से निपटने की तैयारी करते हैं ! हमें मालूम है तुम चैन से बैठने तो न दोगे !

Sanjay Mohan Johri

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