‘लॉकडाउन’ और ‘ननकऊ’ से केश कर्तन

कोरोना भैया जब कल रात सपने में आये तो बातचीत का केंद्र बिंदु ‘लॉकडाउन’ और जिंदगी की बदलती हुई दशा के बारे में रहा।कैसे रोजमर्रा की जिंदगी और छोटी-छोटी समस्याएं हमारी उलझन बन रही थी। जैसे हेयर कटिंग की समस्या। घर से बाहर निकलना मना था लेकिन हर वीकेंड पर आदतन हम पुरुषों का सैलून या महिलाओं का ब्यूटी पार्लर जाना अब संभव नहीं था। बढ़ते बालों को कतरने के लिए हमने मजबूरी में फुटपाथ के ‘ननकऊ’ को पकड़ा और ‘अपार्टमेंट’ के ‘कॉरिडोर में अपनी कुर्सी रख बाल कटवाए। कॉरिडोर में हमने अपनी कुर्सी क्या लगाई, ‘ननकऊ’ की तो चाँदी हो गयी। बगल के ‘मिश्रा’ जी और ‘सक्सेना’ जी भी अपनी तौलिया और सैनिटाइज़र ले निकल आये और बोले भाई साहब हम भी हैं।हमने कोरोना भैया से कहा कि तुमने घर परिवार और और दोस्तों के यहाँ शादियां रुकवा दी।अरे हम सभी को ऐसे अवसरों की तलाश रहती थी जब बरातिओं में श्रृंगार रस देख हम सब आनंदित होते थे लेकिन तुम्हारे चक्कर में सरकार ने प्रतिबन्ध लगा रखे हैं। हमने कहा हमें नहीं करनी ऐसी “सैनिटाइज़्ड” और “मासकाना शादी’ और न ही हम किसी शादी – ब्याह में “मास्क” लगा कर जायेंगे। अरे भाई पहचान और व्यक्तित्व की भी अलग बात होती है। तुम्हारी वजह से न हम माल जा पा रहे ना मल्टीप्लेक्स में सिनेमा। हमने कहा दूर-दूर बैठने का वह आनंद ही कहाँ जो “अगल-बगल’ में है। बगल वाली का हाथ भी नहीं पकड़ सकते, लानत करो ऐसी जिंदगी पर। हमने कहा कोरोना भैया तुमने हम सबका ‘लॉकडाउन’ लगवा जिंदगी का मजा ख़राब कर दिया।

भैया शायद जल्दी में थे।बोले हमको कुछ लोगों में ‘घुसना’ है। बाकी बात और हाल चाल अपने पास जमा के रखना। “फिर मिलेंगे”…

Sanjay Mohan Johri

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