कोरोना भैया फिर फ्रंट पेज पर…

घूमते घामते कोरोना भैया कल रात फिर टपक पड़े! धूल से सने हुये थे!

बोले दो लुटिया पानी डाल नहा लें! हमने कहा कहाँ से चले आ रहे हो जो इतना गंदा गए हो, क्या कब्बडी खेल कर आए हो? बोले अब नहा लेने दो फिर बताते हैं! तुम तब तक सत्तर नंबर चाय बना लो!

नहाने के बाद चाय सिड़कते बोले हम गाँव- गाँव चक्कर लगा रहे थे! काहे भाई, हमने पूछा!

दरअसल चिन-पिन ने आदेश दिया था कि शहरों में तो तुम बजाए हुये हो, गाँव सब ठंडे पड़े हैं किसी को कोई परेशानी नहीं!

हाँ बात तो सही है लेकिन मैंने पूछा अब क्या गाँव जाकर लोगन को निपटाओगे!

निपटा ही नहीं सकत भाया! देखने में भले ही तुम सत्तर प्रतिशत देहात में रहते हो, पर हैं सब दबंग और मजबूत! सुबह चार बजे भोर उठत हैं और दूध मार कर खेतन निकल लेत हैं! हाथ में फावड़ा, कुदाल, बेलचा ले सीधे खुदाई -गुढ़ाई में पिल जात हैं! फिर थोड़ी देर में इनकी ‘महरारू’ रोटी के टक्कड़ प्याज, नीबू , हरी मिर्चा मार पोटली में ले भर पेट खिला देत हैं! मुंह में मितत्रों से भी बढ़िया अंगोछा दिन भर बांधे रहत हैं! समझ लो दिन भर दंड पेल वापस आवत हैं! फिर टक्कड़ रोटी, चटनी दाब ‘तीन-पैग’ ‘ठेका-देशी’ अंदर! बस फिर क्या चारपाई पर डोल जात हैं!

इनको कोरोना का करबे! बोले हमने एक चौधरी से डरते-डरते पूंछ भी लिया ‘कोरोना’ का नाम सुने हो! बोले हम तो पहली बार सुन रहे हैं! हम समझ गए हमारी दाल यहाँ इसीलिए नहीं गल रही! साफ हवा, बंबे का शुद्ध पानी, टक्कड़ रोटी चटनी – इसीलिए इनकी ‘इम्मुनिटी’ इतनी मजबूत है! हमने तो चिन-पिन को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है कि इण्डिया के ग्रामीण भारत में तुम कुछ न कर पाओगे!

दरअसल हम कोरोना शहरी बीमारी है! हम तो बस एसी में रहने वाले, विलासिता का जीवन भोगने वाले लोगों के बीच में ही घुस सकत हैं!

अब देखो ‘मितत्रों’ मुंह की खा गए न! उन्होने मीडिया-तन्त्र से कहकर हमको अंदर के पेज में डलवा दिया था जैसे हमारी कोई ‘औकात’ ही नहीं थी! अब देखो हम फिर ‘फ्रंट पेज’ पर छा गए हैं! आठ राज्यों में हम दुबारा फिर घुसकर सबको चपेटे हुये हैं! हमारा दूसरा आक्रमण शुरू हो गया है! हर तरफ हाहतूत मची हुई है!

वैसे तुम सब पर कोई असर है नहीं! अब पाँच राज्यों में चुनाव हो रहा है! मितत्रों से लेकर सब नेता चुनावी सभाओं में जुते हुये हैं! मास्क, दूरी बनाकर रखना यह सब तुम सब के बस का नहीं!

अच्छा एक बात तो है, ममता सबको ‘घोड़ा’ बनाकर रखे है! कभी ‘मितत्रों’ के साथ रहा प्रशांतवा बंगाल अब दीदी के साथ है! भगवा धारी परेशान तो बहुत हैं! तुम कुछ कह न सकत! एक उयाह महुआ बहना नई निकाल कर आई है! स्मृति को टक्कर अच्छी दे रही!

हमको नहीं लगता इस बार अंगोछा बांध मितत्रों कुछ ज्यादा प्रभाव छोढ़ पा रहे हैं! भीढ़ पर कभी भरोसा न करना क्योंकि असली खेल वोट -मशीन पर ही होता है! शरद बाबू ने कहा है एक राज्य छोढ़ बाकी जगह हालात बहुत अच्छे नहीं दिख रहे! हम कह रहे हैं आज तुम देश में चुनाव करा लो टृंपवा की तरह भागना न पड़ जाए!

हमने कहा तुम्हारी राजनीति पर नज़र काफी गहरी हो रही है! कोरोना भैया बोले अरे यह तो हमारी ड्यूटिन बा!

दरअसल तुम सब ‘देश-द्रोही’ हो! अब देखो ‘अशोका’ में दो हटा दिये गए!

मैं चौंका और बोला तुम्हें यह भी पता चल गया! बोले लो कर लो बात! दोनों सही बोल रहे थे लेकिन देश के खिलाफ तुमने चूँ की, हटा भी दिये जाओगे और हो सकत है ‘देश-द्रोही’ माने जाओगे! मितत्रों का सब जगह कब्जा है! ज़ोर से बोलो जय माता दी ‘सब अच्छा-अच्छा और हरा-भरा’ है और चुप्पे बैठे रहो!

अब बताओ कोई ‘मैडम’ कह रही हैं कि सुबह-सुबह ‘अज़ान’ से उनकी नींद ‘डिस्टर्ब’ हो जावत है! बस सब पिल पड़े राजनीति करने! तुम लोगन का कुछ नहीं जो ‘नवरात्र’ में चीख-चीख कर रोड और पार्क में भोंपा बजाते हो! अरे सुबह का छोड़ो तुम सब तो सारी रात चिल्लात हो! तुम घंटा ठोको तो कुछ नहीं!

हमने कहा जरा धीरे बोलो ‘देश-द्रोह’ का मुकदमा तुम ठुक जाएगा! भैया बोले -हाँ भाई सोर्री!

वैसे इंडिया में कहीं भी कोई कुछ भी बोल दे सबको छूट है! अब देखो एक तुम्हारे यहाँ कल का ‘डिस्को डांसर’ अपने आपको ‘कोबरा’ बता रहा है! एक कह रहा है ‘फटी-जीन्स’ न पहनो भले ही उसकी बिटिया फटी जीन्स छोढ़ नेकर पहने घूमे?

हमारा चिन-पिन सही है ! वोह इतना ‘ठोक’ कर रखता है कि कोई कुछ बोला नहीं, तुरंत निपटा देता है! हमने कहा निपटाना तो यहाँ भी शुरू हो गया है, बस तरीका अलग है! भैया बोले वह कैसे! हमने कहा हम कुछ बोलेंगे तो ‘देश-द्रोह’ में फंस जाएंगे ! कम कहे को ज्यादा समझो!

कोरोना भैया ने तुरंत टॉपिक बदला और बोले अरे होली आ रही है, हमारी भाभी ने गुजिया और नमकीन बनाना शुरू किया कि नहीं! हमने पूछा इसका भी आप शौक फरमाते हैं! भैया बोले हम तो जब भांग घुटेगी तब उसे भी पीने कि इच्छा है! कहते हैं भांग लगा के दीन -दुनिया भूल जाते हैं! पिछली होली में तो बस आए ही थे, मजा नहीं ले पाये! बाकी त्योहार तो तुम्हारे यहाँ के खूब देखे!

हमने कहा मतलब लंबा प्रोग्राम है!

और क्या ‘दूसरी लहर’ बनकर आए हैं तो अभी तो जमेंगे! तुम गुजिया नमकीन तैयार करवाओ, अगले हफ्ते बैठक होगी! सुना है होली में थोड़ी ‘वह’ भी चलती है तुम लोगन के यहाँ! हमने पूछा वह क्या! बोले ‘दारू’! बहुत शौकीन तबीयत के हो भाई, मैं बोला!

बस एक्ज़िट ले ही रहे थे बोले तुमने और भाभी ने टीका लगवा लिया! वैसे तुम मित्र हो, तुमको तो हम बचाए हुये हैं!

मैंने कहा लगवा लिया है क्योंकि तुम पर हम भरोसा नहीं करते !

Sanjay Mohan Johri

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